Tuesday, 29 October 2013

रक्षाबंधन के पावन अवसर पर श्री जावेद बदर जी की एक उत्कृष्ट रचना :

रक्षाबंधन 


आओ हम सब मिलकर करें इस पावन पर्व का अभिनन्दन,
एक वर्ष बाद फिर लौटकर आया है यह अनोखा रक्षाबंधन |

देखो लोगों चारों ओर हो रहा है इसका गुंजन ,
बहनें लगा रही हैं अपने भाइयों के माथे पर चन्दन |



परन्तु मैं ऐसा अभागा मानुष जिसकी कोई बहन नहीं,
ईश्वर का मुझे इस रिश्ते से विमुख  रखना मुझे सहन नहीं |

मैं हुआ क्यूँ वंचित मेरे मन में भी आती है पावन भावना,
तेरी रक्षा करूँगा मेरी बहन, करूँगा हर परिस्थिति का सामना |

जिसने की पद्मावती की रक्षा वह भी एक भ्रात  था ,
इतिहास साक्षी है वह भी एक भावी मुग़ल सम्राट था |

गुहार लगाने पर श्रीकृष्ण ने किया भरी सभा में अवतरण,
नहीं करने दिया दुर्योधन को सबके सामने द्रौपदी का चीरहरण |

भाई शपथ लेता बहन नहीं होने दूंगा कभी तेरा तिरिस्कार,
स्नेह का समुद्र हिलोरें  लेता बढता भाई बहन में प्यार |

देता बहन को सुरक्षा सदा जीवित रखता उसकी संवेदना,
कर माथे का स्पर्श कहता बहन दूर करूंगा तुम्हारी वेदना |

हे ईश्वर ! दिला दे मुझे भी छोटी सी प्यारी सी बहन, 
प्रसन्नता से करूँ उसके हर दुःख-सुख का भार वहन |

समय यूँ ही निकला जता है नहीं रहा है कुछ सूझ,
कैसे मनाऊं आज रक्षाबंधन, कैसे मनाएं कल भैय्यादूज |

आया ईश्वरीय निर्देश कि प्राकृतिक संसाधन भी बहन तुल्य है,
करना चाहिए उनकी रक्षा भी रक्षा वह अपने आप में बहुमूल्य हैं  |

सो बंधवा लेता हूँ राखी इन सब नैसर्गिक बहनों से, 
कभी नहीं बहने दूंगा अश्रु इन सब के नयनों से |



2 comments:

  1. रक्षाबंधन पर भाई-बहन के प्रेम से प्रेमालिप्त यह ह्र्दियक कबिता अति शोभनीय है

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  2. रक्षाबंधन पर्व है रक्षा का,
    भाई-बहन के प्रेम का
    मान-सम्मान की रक्षा का
    इंसानियत को एक सूत्र पिरोने का
    रक्षाबंधन पर्व है रक्षा का।

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