रक्षाबंधन के पावन अवसर पर श्री जावेद बदर जी की एक उत्कृष्ट रचना :
रक्षाबंधन
आओ हम सब मिलकर करें इस पावन पर्व का अभिनन्दन,
एक वर्ष बाद फिर लौटकर आया है यह अनोखा रक्षाबंधन |
देखो लोगों चारों ओर हो रहा है इसका गुंजन ,
बहनें लगा रही हैं अपने भाइयों के माथे पर चन्दन |
परन्तु मैं ऐसा अभागा मानुष जिसकी कोई बहन नहीं,
ईश्वर का मुझे इस रिश्ते से विमुख रखना मुझे सहन नहीं |
मैं हुआ क्यूँ वंचित मेरे मन में भी आती है पावन भावना,
तेरी रक्षा करूँगा मेरी बहन, करूँगा हर परिस्थिति का सामना |
जिसने की पद्मावती की रक्षा वह भी एक भ्रात था ,
इतिहास साक्षी है वह भी एक भावी मुग़ल सम्राट था |
गुहार लगाने पर श्रीकृष्ण ने किया भरी सभा में अवतरण,
भाई शपथ लेता बहन नहीं होने दूंगा कभी तेरा तिरिस्कार,
स्नेह का समुद्र हिलोरें लेता बढता भाई बहन में प्यार |
देता बहन को सुरक्षा सदा जीवित रखता उसकी संवेदना,
कर माथे का स्पर्श कहता बहन दूर करूंगा तुम्हारी वेदना |
हे ईश्वर ! दिला दे मुझे भी छोटी सी प्यारी सी बहन,
प्रसन्नता से करूँ उसके हर दुःख-सुख का भार वहन |
समय यूँ ही निकला जता है नहीं रहा है कुछ सूझ,
कैसे मनाऊं आज रक्षाबंधन, कैसे मनाएं कल भैय्यादूज |
आया ईश्वरीय निर्देश कि प्राकृतिक संसाधन भी बहन तुल्य है,
करना चाहिए उनकी रक्षा भी रक्षा वह अपने आप में बहुमूल्य हैं |
सो बंधवा लेता हूँ राखी इन सब नैसर्गिक बहनों से,
कभी नहीं बहने दूंगा अश्रु इन सब के नयनों से |
रक्षाबंधन पर भाई-बहन के प्रेम से प्रेमालिप्त यह ह्र्दियक कबिता अति शोभनीय है
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर्व है रक्षा का,
ReplyDeleteभाई-बहन के प्रेम का
मान-सम्मान की रक्षा का
इंसानियत को एक सूत्र पिरोने का
रक्षाबंधन पर्व है रक्षा का।